Chandrayaan-3: India’s Resilience and Ambition Take Flight

In a momentous achievement for India’s space exploration endeavors, the highly anticipated Chandrayaan-3 mission has taken off, heralding a new chapter in the nation’s quest to unlock the mysteries of the lunar landscape. With meticulous planning, advanced technology, and unwavering determination, the successful launch of Chandrayaan-3 has reaffirmed India’s position as a prominent player in the global space community. Let us delve into the significance of this remarkable mission and its potential impact on scientific discoveries and national pride.

Building upon Past Success:
Chandrayaan-3 follows in the footsteps of its predecessors, particularly Chandrayaan-2, learning valuable lessons and incorporating advancements to enhance its chances of success. The mission represents the resilience and commitment of the Indian Space Research Organisation (ISRO) to persist and overcome challenges, demonstrating the nation’s determination to reach new heights in space exploration.

Scientific Objectives:
The primary objective of Chandrayaan-3 is to conduct in-depth research and investigation of the moon’s surface, enhancing our understanding of lunar geology, mineralogy, and potential resources. With state-of-the-art instruments and sensors onboard, the mission aims to unravel the moon’s mysteries, providing invaluable insights into its origins, evolution, and potential as a celestial body of scientific interest.

Technological Advancements:
Chandrayaan-3 showcases India’s technological prowess with its advanced spacecraft and cutting-edge instrumentation. The mission incorporates improvements based on the lessons learned from previous missions, particularly in the area of soft landing technology. With enhanced precision and navigational capabilities, Chandrayaan-3 promises to further elevate India’s reputation as a global leader in space technology.

Collaborative Endeavors:
The success of Chandrayaan-3 is not only a testament to India’s capabilities but also a reflection of the nation’s collaboration with international partners. Building upon existing partnerships and forging new ones, India has engaged with space agencies worldwide, including NASA, to foster knowledge sharing, technological cooperation, and joint scientific endeavors. Such collaborations extend the frontiers of space exploration and highlight the power of global cooperation.

National Pride and Inspiration:
The triumphant launch of Chandrayaan-3 has sparked a sense of national pride and unity, uniting people from all walks of life. It serves as a source of inspiration, motivating young minds to pursue careers in science, technology, engineering, and mathematics (STEM). The mission’s achievements contribute to fostering a scientific temper and nurturing a generation of innovators who will shape India’s future in the field of space exploration.

Conclusion:
The successful launch of Chandrayaan-3 is a moment of triumph for India, showcasing the nation’s technological acumen, scientific curiosity, and unwavering determination. With its ambitious objectives, advanced technology, and international collaborations, Chandrayaan-3 has set the stage for remarkable discoveries and a promising future for India’s space program. As the mission progresses, we eagerly await the scientific breakthroughs and knowledge that will be gleaned from this extraordinary lunar journey.

Chandrayaan-3 has not only advanced India’s space exploration endeavors but has also instilled a sense of wonder and pride in the hearts of its citizens. This remarkable mission inspires us all to dream big, embrace challenges, and strive for greatness. With each successful milestone achieved, India continues to solidify its position as a global force in space exploration, leaving an indelible mark on the scientific community and humanity as a whole.

References:

Indian Space Research Organisation (ISRO)
National Aeronautics and Space Administration (NASA)

ISRO | CHANDRAYAN 3 | CHANDRAYAN LAUNCHED | CHANDRYAN 3 TAKEN OFF | SUCCESSFUL CHANDRAYAN |

भक्ति और संपत्ति

एक बार काशी के निकट के एक इलाके के नवाब ने गुरु नानक से पूछा, ‘आपके प्रवचन का महत्व ज्यादा है या हमारी दौलत का?‘ नानक ने कहा, ‘इसका जवाब उचित समय पर दूंगा।’ कुछ समय बाद नानक ने नवाब को काशी के अस्सी घाट पर एक सौ स्वर्ण मुद्राएं लेकर आने को कहा। नानक वहां प्रवचन कर रहे थे। नवाब ने स्वर्ण मुद्राओं से भरा थाल नानक के पास रख दिया और पीछे बैठ कर प्रवचन सुनने लगा। वहां एक थाल पहले से रखा हुआ था। प्रवचन समाप्त होने के बाद नानक ने थाल से स्वर्ण मुद्राएं मुट्ठी में लेकर कई बार खनखनाया। भीड़ को पता चल गया कि स्वर्ण मुद्राएं नवाब की तरफ से नानक को भेंट की गई हैं।

थोड़ी देर बाद अचानक नानक ने थाल से स्वर्ण मुद्राएं उठा कर गंगा में फेंकना शुरू कर दिया। यह देख कर वहां अफरातफरी मच गई। कई लोग स्वर्ण मुदाएं लेने के लिए गंगा में कूद गए। भगदड़ में कई लोग घायल हो गए। मारपीट की नौबत आ गई। नवाब को समझ में नहीं आया कि आखिर नानक ने यह सब क्यों किया। तभी नानक ने जोर से कहा, ‘भाइयों, असली स्वर्ण मुद्राएं मेरे पास हैं। गंगा में फेंकी गई मुदाएं नकली हैं। आप लोग शांति से बैठ जाइए।’ जब सब लोग बैठ गए तो नवाब ने पूछा, ‘आप ने यह तमाशा क्यों किया? धन के लालच में तो लोग एक दूसरे की जान भी ले सकते हैं।’ नानक ने कहा, ‘मैंने जो कुछ किया वह आपके प्रश्न का उत्तर था। आप ने देख लिया कि प्रवचन सुनते समय लोग सब कुछ भूल कर भक्ति में डूब जाते हैं। लेकिन माया लोगों को सर्वनाश की ओर ले जाती है। प्रवचन लोगों में शांति और सद्भावना का संदेश देता है मगर दौलत तो विखंडन का रास्ता है।‘ नवाब को अपनी गलती का अहसास हो गया।

संकलन: सुरेश सिंह
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित

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बेताल पच्चीसी – पच्चीसवीं और अन्तिम कहानी

राजा मुर्दे को लेकर योगी के पास आया। योगी राजा को और मुर्दे को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बोला, “हे राजन्! तुमने यह कठिन काम करके मेरे साथ बड़ा उपकार किया है। तुम सचमुच सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो।”

इतना कहकर उसने मुर्दे को उसके कंधे से उतार लिया और उसे स्नान कराकर फूलों की मालाओं से सजाकर रख दिया। फिर मंत्र-बल से बेताल का आवाहन करके उसकी पूजा की। पूजा के बाद उसने राजा से कहा, “हे राजन्! तुम शीश झुकाकर इसे प्रणाम करो।”

राजा को बेताल की बात याद आ गयी। उसने कहा, “मैं राजा हूँ, मैंने कभी किसी को सिर नहीं झुकाया। आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिए।”

योगी ने जैसे ही सिर झुकाया, राजा ने तलवार से उसका सिर काट दिया। बेताल बड़ा खुश हुआ। बोला, “राजन्, यह योगी विद्याधरों का स्वामी बनना चाहता था। अब तुम बनोगे। मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है। तुम जो चाहो सो माँग लो।”

राजा ने कहा, “अगर आप मुझसे खुश हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आपने जो चौबीस कहानियाँ सुनायीं, वे, और पच्चीसवीं यह, सारे संसार में प्रसिद्ध हो जायें और लोग इन्हें आदर से पढ़े।”

बेताल ने कहा, “ऐसा ही होगा। ये कथाएँ ‘बेताल-पच्चीसी’ के नाम से मशहूर होंगी और जो इन्हें पढ़ेंगे, उनके पाप दूर हो जायेंगे।”

यह कहकर बेताल चला गया। उसके जाने के बाद शिवाजी ने प्रकट होकर कहा, “राजन्, तुमने अच्छा किया, जो इस दुष्ट साधु को मार डाला। अब तुम जल्दी ही सातों द्वीपों और पाताल-सहित सारी पृथ्वी पर राज्य स्थापित करोगे।”

इसके बाद शिवाजी अन्तर्धान हो गये। काम पूरे करके राजा श्मशान से नगर में आ गया। कुछ ही दिनों में वह सारी पृथ्वी का राजा बन गया और बहुत समय तक आनन्द से राज्य करते हुए अन्त में भगवान में समा गया।

आभार: विकिसोर्स

बेताल पच्चीसी की सभी कहानीयाँ यहाँ पढी जा सकती हैं

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बेताल पच्चीसी – बाईसवीं कहानी

शेर बनाने का अपराध किसने किया?

कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था। उसके नगर में एक ब्राह्मण था, जिसके चार बेटे थे। लड़कों के सयाने होने पर ब्राह्मण मर गया और ब्राह्मणी उसके साथ सती हो गयी। उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया। वे चारों भाई नाना के यहाँ चले गये। लेकिन कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा। तब सबने मिलकर सोचा कि कोई विद्या सीखनी चाहिए। यह सोच करके चारों चार दिशाओं में चल दिये।

कुछ समय बाद वे विद्या सीखकर मिले। एक ने कहा, “मैंने ऐसी विद्या सीखी है कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूँ।” दूसरे ने कहा, “मैं उसके खाल और बाल पैदा कर सकता हूँ।” तीसरे ने कहा, “मैं उसके सारे अंग बना सकता हूँ।” चौथा बोला, “मैं उसमें जान डाल सकता हूँ।”

फिर वे अपनी विद्या की परीक्षा लेने जंगल में गये। वहाँ उन्हें एक मरे शेर की हड्डियाँ मिलीं। उन्होंने उसे बिना पहचाने ही उठा लिया। एक ने माँस डाला, दूसरे ने खाल और बाल पैदा किये, तीसरे ने सारे अंग बनाये और चौथे ने उसमें प्राण डाल दिये। शेर जीवित हो उठा और सबको खा गया।

यह कथा सुनाकर बेताल बोला, “हे राजा, बताओ कि उन चारों में शेर बनाने का अपराध किसने किया?”

राजा ने कहा, “जिसने प्राण डाले उसने, क्योंकि बाकी तीन को यह पता ही नहीं था कि वे शेर बना रहे हैं। इसलिए उनका कोई दोष नहीं है।”

यह सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा जाकर फिर उसे लाया। रास्ते में बेताल ने एक नयी कहानी सुनायी।

आभार: विकिसोर्स

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बेताल पच्चीसी – इक्कीसवीं कहानी

विराग में अंधा कौन?

विशाला नाम की नगरी में पदमनाभ नाम का राजा राज करता था। उसी नगर में अर्थदत्त नाम का एक साहूकार रहता था। अर्थदत्त के अनंगमंजरी नाम की एक सुन्दर कन्या थी। उसका विवाह साहूकार ने एक धनी साहूकार के पुत्र मणिवर्मा के साथ कर दिया। मणिवर्मा पत्नी को बहुत चाहता था, पर पत्नी उसे प्यार नहीं करती थी। एक बार मणिवर्मा कहीं गया। पीछे अनंगमंजरी की राजपुरोहित के लड़के कमलाकर पर निगाह पड़ी तो वह उसे चाहने लगी। पुरोहित का लड़का भी लड़की को चाहने लगा। अनंगमंजरी ने महल के बाग़ मे जाकर चंडीदेवी को प्रणाम कर कहा, “यदि मुझे इस जन्म में कमलाकर पति के रूप में न मिले तो अगले जन्म में मिले।”

यह कहकर वह अशोक के पेड़ से दुपट्टे की फाँसी बनाकर मरने को तैयार हो गयी। तभी उसकी सखी आ गयी और उसे यह वचन देकर ले गयी कि कमलाकर से मिला देगी। दासी सबेरे कमलाकर के यहाँ गयी और दोनों के बगीचे में मिलने का प्रबन्ध कर आयी। कमलाकर आया और उसने अनंगमंजरी को देखा। वह बेताब होकर मिलने के लिए दौड़ा। मारे खुशी के अनंगमंजरी के हृदय की गति रुक गयी और वह मर गयी। उसे मरा देखकर कमलाकर का भी दिल फट गया और वह भी मर गया। उसी समय मणिवर्मा आ गया और अपनी स्त्री को पराये आदमी के साथ मरा देखकर बड़ा दु:खी हुआ। वह स्त्री को इतना चाहता था कि उसका वियोग न सहने से उसके भी प्राण निकल गये। चारों ओर हाहाकार मच गया। चंडीदेवी प्रकट हुई और उसने सबको जीवित कर दिया।

इतना कहकर बेताल बोला, “राजन्, यह बताओ कि इन तीनों में सबसे ज्यादा विराग में अंधा कौन था?”

राजा ने कहा, “मेरे विचार में मणिवर्मा था, क्योकि वह अपनी पत्नी को पराये आदमी को प्यार करते देखकर भी शोक से मर गया। अनंगमंजरी और कमलाकर तो अचानक मिलने की खुशी से मरे। उसमें अचरज की कोई बात नहीं थी।”

राजा का यह जवाब सुनकरव बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वापस जाकर उसे लाना पड़ा। रास्ते में बेताल ने फिर एक कहानी कही।

आभार: विकिसोर्स

ऋषि-कन्या, जीवों को मारकर पाप कमाते हो, नरेश, बेताल, बेताल पच्चीसी, यह भी खूब रही, राजा विक्रमाद्वित्य, हिन्दी चिट्ठा, हिन्दी ब्लौग, hindi blog, hindi chittha, naresh, naresh blog, naresh delhi, naresh hindi blog, naresh ka blog, naresh sem, pryas, raja vikramaditiya, vikram aur baital, vikram baital, yah bhi khoob rahi, बेताल पच्चीसी – इक्कीसवीं कहानी

बेताल पच्चीसी – बीसवीं कहानी

वह बालक क्यों हँसा?

चित्रकूट नगर में एक राजा रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल में गया। घूमते-घूमते वह रास्ता भूल गया और अकेला रह गया। थक कर वह एक पेड़ की छाया में लेटा कि उसे एक ऋषि-कन्या दिखाई दी। उसे देखकर राजा उस पर मोहित हो गया। थोड़ी देर में ऋषि स्वयं आ गये। ऋषि ने पूछा, “तुम यहाँ कैसे आये हो?” राजा ने कहा, “मैं शिकार खेलने आया हूँ। ऋषि बोले, “बेटा, तुम क्यों जीवों को मारकर पाप कमाते हो?”

राजा ने वादा किया कि मैं अब कभी शिकार नहीं खेलूँगा। खुश होकर ऋषि ने कहा, “तुम्हें जो माँगना हो, माँग लो।”

राजा ने ऋषि-कन्या माँगी और ऋषि ने खुश होकर दोनों का विवाह कर दिया। राजा जब उसे लेकर चला तो रास्ते में एक भयंकर राक्षस मिला। बोला, “मैं तुम्हारी रानी को खाऊँगा। अगर चाहते हो कि वह बच जाय तो सात दिन के भीतर एक ऐसे ब्राह्मण-पुत्र का बलिदान करो, जो अपनी इच्छा से अपने को दे और उसके माता-पिता उसे मारते समय उसके हाथ-पैर पकड़ें।” डर के मारे राजा ने उसकी बात मान ली। वह अपने नगर को लौटा और अपने दीवान को सब हाल कह सुनाया। दीवान ने कहा, “आप परेशान न हों, मैं उपाय करता हूँ।”

इसके बाद दीवान ने सात बरस के बालक की सोने की मूर्ति बनवायी और उसे कीमती गहने पहनाकर नगर-नगर और गाँव-गाँव घुमवाया। यह कहलवा दिया कि जो कोई सात बरस का ब्राह्मण का बालक अपने को बलिदान के लिए देगा और बलिदान के समय उसके माँ-बाप उसके हाथ-पैर पकड़ेंगे, उसी को यह मूर्ति और सौ गाँव मिलेंगे।

यह ख़बर सुनकर एक ब्राह्मण-बालक राजी हो गया, उसने माँ-बाप से कहा, “आपको बहुत-से पुत्र मिल जायेंगे। मेरे शरीर से राजा की भलाई होगी और आपकी गरीबी मिट जायेगी।”

माँ-बाप ने मना किया, पर बालक ने हठ करके उन्हें राजी कर लिया।

माँ-बाप बालक को लेकर राजा के पास गये। राजा उन्हें लेकर राक्षस के पास गया। राक्षस के सामने माँ-बाप ने बालक के हाथ-पैर पकड़े और राजा उसे तलवार से मारने को हुआ। उसी समय बालक बड़े ज़ोर से हँस पड़ा।

इतना कहकर बेताल बोला, “हे राजन्, यह बताओ कि वह बालक क्यों हँसा?

राजा ने फौरन उत्तर दिया, “इसलिए कि डर के समय हर आदमी रक्षा के लिए अपने माँ-बाप को पुकारता है। माता-पिता न हों तो पीड़ितों की मदद राजा करता है। राजा न कर सके तो आदमी देवता को याद करता है। पर यहाँ तो कोई भी बालक के साथ न था। माँ-बाप हाथ पकड़े हुए थे, राजा तलवार लिये खड़ा था और राक्षस भक्षक हो रहा था। ब्राह्मण का लड़का परोपकार के लिए अपना शरीर दे रहा था। इसी हर्ष से और अचरज से वह हँसा।”

इतना सुनकर बेताल अन्तर्धान हो गया और राजा लौटकर फिर उसे ले आया। रास्ते में बेताल ने फिर कहानी शुरू कर दी।

आभार: विकिसोर्स

बेताल पच्चीसी – उन्नीसवीं कहानी

पिण्ड किसको देना चाहिए?

वक्रोलक नामक नगर में सूर्यप्रभ नाम का राजा राज करता था। उसके कोई सन्तान न थी। उसी समय में एक दूसरी नगरी में धनपाल नाम का एक साहूकार रहता था। उसकी स्त्री का नाम हिरण्यवती था और उसके धनवती नाम की एक पुत्री थी। जब धनवती बड़ी हुई तो धनपाल मर गया और उसके नाते-रिश्तेदारों ने उसका धन ले लिया। हिरण्यवती अपनी लड़की को लेकर रात के समय नगर छोड़कर चल दी। रास्ते में उसे एक चोर सूली पर लटकता हुआ मिला। वह मरा नहीं था। उसने हिरण्यवती को देखकर अपना परिचय दिया और कहा, “मैं तुम्हें एक हज़ार अशर्फियाँ दूँगा। तुम अपनी लड़की का ब्याह मेरे साथ कर दो।”

हिरण्यवती ने कहा, “तुम तो मरने वाले हो।”

चोर बोला, “मेरे कोई पुत्र नहीं है और निपूते की परलोक में सदगति नहीं होती। अगर मेरी आज्ञा से और किसी से भी इसके पुत्र पैदा हो जायेगा तो मुझे सदगति मिल जायेगी।”

हिरण्यवती ने लोभ के वश होकर उसकी बात मान ली और धनवती का ब्याह उसके साथ कर दिया। चोर बोला, “इस बड़ के पेड़ के नीचे अशर्फियाँ गड़ी हैं, सो ले लेना और मेरे प्राण निकलने पर मेरा क्रिया-कर्म करके तुम अपनी बेटी के साथ अपने नगर में चली जाना।”

इतना कहकर चोर मर गया। हिरण्यवती ने ज़मीन खोदकर अशर्फियाँ निकालीं, चोर का क्रिया-कर्म किया और अपने नगर में लौट आयी।

उसी नगर में वसुदत्त नाम का एक गुरु था, जिसके मनस्वामी नाम का शिष्य था। वह शिष्य एक वेश्या से प्रेम करता था। वेश्या उससे पाँच सौ अशर्फियाँ माँगती थी। वह कहाँ से लाकर देता! संयोग से धनवती ने मनस्वामी को देखा और वह उसे चाहने लगी। उसने अपनी दासी को उसके पास भेजा। मनस्वामी ने कहा कि मुझे पाँच सौ अशर्फियाँ मिल जायें तो मैं एक रात धनवती के साथ रह सकता हूँ।

हिरण्यवती राजी हो गयी। उसने मनस्वामी को पाँच सौ अशर्फियाँ दे दीं। बाद में धनवती के एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसी रात शिवाजी ने सपने में उन्हें दर्शन देकर कहा, “तुम इस बालक को हजार अशर्फियों के साथ राजा के महल के दरवाज़े पर रख आओ।”

माँ-बेटी ने ऐसा ही किया। उधर शिवाजी ने राजा को सपने में दर्शन देकर कहा, “तुम्हारे द्वार पर किसी ने धन के साथ लड़का रख दिया है, उसे ग्रहण करो।”

राजा ने अपने नौकरों को भेजकर बालक और अशर्फियों को मँगा लिया। बालक का नाम उसने चन्द्रप्रभ रखा। जब वह लड़का बड़ा हुआ तो उसे गद्दी सौंपकर राजा काशी चला गया और कुछ दिन बाद मर गया।

पिता के ऋण से उऋण होने के लिए चन्द्रप्रभ तीर्थ करने निकला। जब वह घूमते हुए गयाकूप पहुँचा और पिण्डदान किया तो उसमें से तीन हाथ एक साथ निकले। चन्द्रप्रभ ने चकित होकर ब्राह्मणों से पूछा कि किसको पिण्ड दूँ? उन्होंने कहा, “लोहे की कीलवाला चोर का हाथ है, पवित्रीवाला ब्राह्मण का है और अंगूठीवाला राजा का। आप तय करो कि किसको देना है?”

इतना कहकर बेताल बोला, “राजन्, तुम बताओ कि उसे किसको पिण्ड देना चाहिए?”

राजा ने कहा, “चोर को; क्योंकि उसी का वह पुत्र था। मनस्वामी उसका पिता इसलिए नहीं हो सकता कि वह तो एक रात के लिए पैसे से ख़रीदा हुआ था। राजा भी उसका पिता नहीं हो सकता, क्योंकि उसे बालक को पालने के लिए धन मिल गया था। इसलिए चोर ही पिण्ड का अधिकारी है।”

इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहाँ जाकर उसे लाना पड़ा। रास्ते में फिर उसने एक कहानी सुनाई।

आभार: विकिसोर्स

बेताल पच्चीसी – चौदहवीं कहानी

चोर क्यों रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?”

अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक साहूकार था, जिसके रत्नवती नाम की एक लड़की थी। वह सुन्दर थी। वह पुरुष के भेस में रहा करती थी और किसी से भी ब्याह नहीं करना चाहती थी। उसका पिता बड़ा दु:खी था।

इसी बीच नगर में खूब चोरियाँ होने लगी। प्रजा दु:खी हो गयी। कोशिश करने पर भी जब चोर पकड़ में न आया तो राजा स्वयं उसे पकड़ने के लिए निकला। एक दिन रात को जब राजा भेष बदलकर घूम रहा था तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया। राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया। चोर ने कहा, “तब तो तुम मेरे साथी हो। आओ, मेरे घर चलो।”

दोनो घर पहुँचे। उसे बिठलाकर चोर किसी काम के लिए चला गया। इसी बीच उसकी दासी आयी और बोली, “तुम यहाँ क्यों आये हो? चोर तुम्हें मार डालेगा। भाग जाओ।”

राजा ने ऐसा ही किया। फिर उसने फौज लेकर चोर का घर घेर लिया। जब चोर ने ये देखा तो वह लड़ने के लिए तैयार हो गया। दोनों में खूब लड़ाई हुई। अन्त में चोर हार गया। राजा उसे पकड़कर राजधानी में लाया और से सूली पर लटकाने का हुक्म दे दिया।

संयोग से रत्नवती ने उसे देखा तो वह उस पर मोहित हो गयी। पिता से बोली, “मैं इसके साथ ब्याह करूँगी, नहीं तो मर जाऊँगी।

पर राजा ने उसकी बात न मानी और चोर सूली पर लटका दिया। सूली पर लटकने से पहले चोर पहले तो बहुत रोया, फिर खूब हँसा। रत्नवती वहाँ पहुँच गयी और चोर के सिर को लेकर सती होने को चिता में बैठ गयी। उसी समय देवी ने आकाशवाणी की, “मैं तेरी पतिभक्ति से प्रसन्न हूँ। जो चाहे सो माँग।”

रत्नवती ने कहा, “मेरे पिता के कोई पुत्र नहीं है। सो वर दीजिए, कि उनसे सौ पुत्र हों।”

देवी प्रकट होकर बोलीं, “यही होगा। और कुछ माँगो।”

वह बोली, “मेरे पति जीवित हो जायें।”

देवी ने उसे जीवित कर दिया। दोनों का विवाह हो गया। राजा को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने चोर को अपना सेनापति बना लिया।

इतनी कहानी सुनाकर बेताल ने पूछा, ‘हे राजन्, यह बताओ कि सूली पर लटकने से पहले चोर क्यों तो ज़ोर-ज़ोर से रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?”

राजा ने कहा, “रोया तो इसलिए कि वह राजा रत्नदत्त का कुछ भी भला न कर सकेगा। हँसा इसलिए कि रत्नवती बड़े-बड़े राजाओं और धनिकों को छोड़कर उस पर मुग्ध होकर मरने को तैयार हो गयी। स्त्री के मन की गति को कोई नहीं समझ सकता।”

इतना सुनकर बेताल गायब हो गया और पेड़ पर जा लटका। राजा फिर वहाँ गया और उसे लेकर चला तो रास्ते में उसने यह कथा कही।

आभार: विकिसोर्स

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हरिद्वार, ऋषिकेश, चम्बा, न्यू टिहरी और टिहरी डैम की सैर – यात्रा भाग-1

23 जनवरी को शाम को ऑफिस से निकलते-निकलते 7 बज गये. शाम को इस समय गुडगाँव के शंकर चौक पर जाम रोजमर्रा की समस्या है. यहाँ से निकले, तो धौला कुँआ में भी बुरी तरह ट्रैफिक जाम था. किसी तरह रावतुला राम मार्ग से होते हुऐ आर.के.पुरम से निकल कर रिंग रोड पकडा. रिंग रोड पर जाम कम था लेकिन गाडी केवल रेंग भर रही थी.

यह एक लम्बा सप्ताहांत था. रह रह कर अफसोस हो रहा था कि कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम क्यों नहीं बन पाया. तभी रमेश का फोन आ गया… हैलो…भैया.. हाँ … कहाँ हो.. हाँ मैं लाजपत नगर में हूँ. भैया जल्दी आ जाओ. क्यों? क्या हुआ. भैया हरिद्वार का प्रोग्राम बन गया है. आप, मैं और रणवीर. अरे वाह! मेरे मुँह से निकल पडा, मजा आ गया. बस फिर क्या था. ड्राईवर को बोला यार थोडा तेज चलाओ और घर पर फोन करके बैग तैयार करने के लिये बोल दिया.

साढे नौ बजे घर पहुँचा, रमेश और रणवीर को फोन किया. रात को ग्यारह बजे निकलने का टाइम फिक्स हुआ. राणा (रणवीर) और रमेश को खाना पैक करने का आर्डर देकर मैं सैलीब्रेशन की तीन बौटल ले आया. करीब पौने ग्यारह बजे रमेश गाडी लेकर मेरे घर के नीचे आ गया और हार्न पर हाथ रख कर बैठ गया. निकलते-निकलते सवा ग्यारह बज गये. राणा तो गाडी में बैठते ही सो गया.

Delhi to Rishiesh
Delhi to Rishiesh

अब प्रोग्राम ये बना की करीब सौ किलोमीटर जाने के बाद खाना खाऐंगे. लेकिन पीना चलता रहेगा. पचास-पचपन की रफतार से गाडी चल रही थी. थोडे-थोडे खुले शीशे से आती ठंडी हवा चहरे से लगातार टकरा रही थी. एक दो बार ठंडी झुर्झुरी से बदन कंपकंपा गया. दो-दो पैग हम मार चुके थे. पिछली सीट पर मैं अकेला था. धीरे-धीरे नींद मुझे अपने आगोश में भरने लगी थी कि तभी एक झटके के साथ गाडी रूक गयी. पिछला टायर पंक्चर था.

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रमेश ने टायर बदला, मैं फोटो शूट कर रहा था और राणा, आलसी राम, आराम से खडा हुआ हमें बस देख रहा था. बीस मिनट में टायर बदलकर गाडी फिर से सडक पर दौडने लगी.

पेट में चुहे कुद रहे थे. वैसे दाल-मक्खनी और दो नान हम चलती गाडी में ही निपटा चुके थे. मगर टायर बदलते समय सब खाना पच गया. रात के तीन बजे थे, खतौली के पास एक राजस्थान-मारवाडी ढाबे पर गाडी रोक दी.

Rajasthani Marwari Hotel
Rajasthani Marwari Hotel

ढाबे वाले को मटर-पनीर और रोटी का आर्डर देते हुऐ उससे कहा कि हमारी दाल और नान भी गर्म कर दो. वैसे वो सैट (पिये हुऐ) हो रखा था. उसने बिना हील-हुज्जत के साफ मना कर दिया कि मैं नहीं करूंगा. मुझे पता था कि उसे कैसे लाईन पर लाना है.

Dhabe Wala - Delhi to Rishikesh Enroute
Dhabe Wala - Delhi to Rishikesh Enroute

मैंने झट से कैमरा निकाला और उसको एक स्माईल देने के लिये कहा. वो खुश हो गया और एक पोज़ दिया.

Dhabe Wala With His Beta
Dhabe Wala With His Beta

उसके बाद वो बोला, “एक फोटो मेरी, मेरे बेटे के साथ भी”. दोनों की दो फ़ोटो ले ली. अब वो बोला, “साहब, जरा दाल और नान देना गर्म करना है”. ये फोटो वाली ट्रिक मैंने कई बार ट्राई की है अधिकतर बात बन जाती है.

गर्मागर्म मटर पनीर खाने में मजा आ गया. राणा ने गरम पनीर मुँह में डाला तो उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया.

Ramesh and Rana having dinner
Ramesh and Rana having dinner

Hot Mutter Paneer
Hot Mutter Paneer

साढे तीन बज गये थे. खाने के बाद एक-एक कप चाय पी कर हम फिर निकल पडे अपनी मंजिल की ओर.

करीब 6 बजे हम हरिद्वार पहुँच गये थे. बीच में आधा-पौना घंटा मैंने चुपके से नींद निकाल ली थी………………

शोले का नया वर्ज़न

पुण्डीर जी के ब्लाग पर आज एक पोस्ट देखी New version of sholey. पसंद आयी तो सोचा इसे हिंदी में भाषा में बदलकर हिंदी प्रेमीयों के लिये प्रस्तुत किया जाये.

शोले का नया वर्ज़न

जय: मौसी, लडका सत्यम में काम करता है
मौसी: हाय राम!!! और कहीं ट्राई कर रहा है क्या?

जय: कहाँ मौसी, दो साल सत्यम में काम करने के बाद कोई कंपनी लेती है भला.
मौसी: हाय राम!!! तो क्या दो साल से सत्यम में काम कर रहा है.

जय: हाँ सोचा था दो साल में सैलरी बढ जायेगी. आजकल तो सैलरी भी ज्यादा नहीं है.
मौसी: तो क्या सैलरी भी कम मिल रही है.

जय: अब अप्रैज़ल भी तो आसानी से नहीं होता है ना मौसी.
मौसी: हाय हाय…!!! तो क्या अप्रैज़ल भी नहीं होता उसका?

जय: सिनीयर से झगडा करने के बाद अप्रैज़ल में अच्छी रेटिंग कहाँ मिलती है मौसी…?
मौसी: तो क्या सिनीयर से लडता भी है?

जय: अब दो साल तक ऑन साईट जाने को ना मिले तो हो जाती है कभी कभी अनबन.
मौसी: तो क्या अब तक एक बार भी ऑनसाईट नहीं गया.

जय: अब आऊटडेटिड टैक्नोलौजी के डवलपरों की किस्मत में तो यही लिखा है मौसी.
मौसी: क्या कहा लडका आऊटडेटिड टैक्नोलौजी में काम करता है…?

मौसी: कौन से कालेज से पढाई की है?
जय: उसका पता लगते ही आपको खबर कर देंगे मौसी.

मौसी: हाय राम…
जय: तो मैं रिश्ता पक्का समझुं मौसी?

मौसी: बेटा कान खोल कर सुन लो… सगी मौसी हूँ बसंती की कोई सौतेली माँ नहीं… भले ही हमारी बसंती किसी कॉल सेंटर वाले लडके से शादी कर ले पर सत्यम के किसी ऐम्प्लाय से कतई नहीं करेगी.