Withdrawal of Maha Bank Swasthya Yojana with effect from March 6, 2023

Maha Bank Swasthya Yojana Bancassurance Tie-up Product with Bank of Maharashtra has been decided to withdraw the same with effect from March 6, 2023 by United India Insurance Co. Ltd.

If renewal of the policy holder falls under the 90 days’ notice period i.e., before June 5, 2023, the policy can be renewed with existing terms, conditions, and premium rate till its expiry. However, this product will cease to exist and will not be available for renewal with effect from June 5, 2023.

The policies which are in force will continue to be serviced until expiry. Company will honour any claims made during the policy period in accordance with the terms and conditions of the policy.

If policy holder, wants to migrate his/her policy can contact me:

Ms. Babita (Insurance Advisor – United India Insurance Co. Ltd.)

Mobile: 9810233908

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Syndarogya Policy – How to Renew it.

Syndargoya Policy was a Co-branded product of Syndicate Bank and United India Insurance Co. It was a Mediclaim Policy. This policy has been discontinued due to merger of the Syndicate Bank with the Canara Bank. Now, this Mediclaim Policy is no longer available for renewal.

Syndarogya Policy holder can port/migrate this policy with Family Medicare Policy or Individual Health Policy of United India. Contact : Ms. Babita Mobile: 8383808212.

Benefits to Renew with United India

United India will provide 100% Continuity Benefits to Syndarogya Policy Holder.

United India has all your claim history and medical records.

You are not new and already have relation with United India.

Contact: Ms. Babita. Mobile: 8383808212, Email: nareshkumaruiic@gmail.com, United India Insurance Co. Ltd., Disional Office-5, 10203, 3rd Floor, Jamuna House, Karol Bagh, Delhi-110005

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बलिदानी पुत्र देवायत

जूनागढ़ का पतन हो रहा था। राजा वीरता से युद्ध करते हुए रणक्षेत्र में सो चुके थे। महल में हाहाकार मच रहा था, किन्तू फिर भी पट्टन की सेनाएं दुर्ग को घेरे हुए थीं। सेना अंदर घुसकर राजा के पुत्र युवराज नौघड़ को पकड़कर मार डालना चाहती थी।

राजमंत्री ने दुर्ग का गुप्त द्वार खोला और रानी को राजकुमार के साथ बाहर निकाल दिया। रात्रि के घने अंधकार में अपने पुत्र को शत्रु के सैनिकों की आंखों से बचाती हुई रानी एक गरीब अहीर के द्वार पर खड़ी थी। उसका नाम देवायत था।
‘मुझे पहचानते हो भैया!’ रानी ने गृहपति से पूछा।
‘अपनी रानी माता को कौन नहीं पहचानेगा?’देवायत ने उत्तर दिया।
‘और इसे?’ रानी ने नौघड़ की ओर संकेत करते हुए देवायत से प्रश्न किया।
‘हां-हां क्यों नहीं?’ युवराज हैं न। कहिए, कैसे आगमन हुआ मेरी झोंपड़ी में? क्या आज्ञा है मेरे लिए? उसने हाथ जोड़कर प्रश्न किया।
‘हम तुम्हारी शरण में आए हैं भैया!’ रानी ने उत्तर दिया, ‘यह तो तुम्हें मालूम ही होगा कि जूनागढ़ का पतन हो चुका है और तुम्हारे महाराज मारे जा चुके हैं। अब शत्रु तुम्हारे इस युवराज की जान के ग्राहक हैं, वे इसकी खोज में हैं।’
‘आप चिंता न करें रानी माता!’ देवायत ने कहा, ‘अंदर आइए। मेरे घर में जो भी रूखा-सूखा है, वह सब कुछ आपका दिया हुआ ही तो है।’
देवायत ने रानी को अपने घर में आश्रय दिया। वह जानता था कि जूनागढ़ पर शत्रुओं का अधिकार हो चुका है और इसलिए राजवंश के किसी भी व्यक्ति का पक्ष लेना उसके लिए महान संकट का कारण बन सकता है, किन्तु वह राजपूत था और शरणागत के प्रति राजपूत के कर्तव्य को निभाना भी जानता था, और यही कारण था कि वह पहले रानी और युवराज को खिलाकर स्वयं पीछे खाता और उन्हें शैय्या पर सुलाकर स्वयं धरती पर सोता।
पर बात कब तक छिपती। आखिर शत्रु को अपने गुप्तचरों द्वारा पता लग ही गया कि जूनागढ़ की रानी और उनका पुत्र देवायत के घर में मेहमान हैं। अगले ही दिन पट्टन की सेनाओं ने देवायत के मकान को घेर लिया।
‘देवायत!’ सेनापति ने कड़ककर पूछा, ‘कहां है राजकुमार नौघड़?’
‘मुझे क्या पता अन्नदाता!’ देवायत ने हाथ जोड़कर नम्रता से उत्तर दिया।
‘झूठ न बोलो देवायत!’ सेनापति ने आंखें तरेरते हुए कहा, ‘नहीं तो कोड़ों की मार से शरीर की चमड़ी उधेड़ दी जाएगी।’
‘जो चाहे करो मालिक!’ देवायत ने उत्तर दिया,’ तुम्हारी इच्छा क्या है?’
‘अच्छा।’ सेनापति ने अपने सैनिकों की ओर देखते हुए कहा, ‘इसे बांध दो इस पेड़ से और देखो की घर में कौन-कौन हैं?’
देवायत को पेड़ से बांध दिया गया। सैनिक घर में घुसकर उसकी तलाशी लेने को तैयार होने लगे।
‘अब क्या होगा?’ देवायत मन ही मन सोचने लगा,’सामने ही तो बैठे हैं राजकुमार। कैसे बच पाएंगे वे इन यमदूतों के हाथों से।’
और दूसरे ही क्षण उसने एक मार्ग खोज लिया।
‘ठहरो।’ वह पेड़ से बंधा बंधा ही चिल्ला उठा, ‘ मैं ही बुलवाए देता हूं राजकुमार को।’
घर में घुसने वालों के कदम रुक गए। देवायत ने पत्नी को पास बुलाया और उसे संकेत से कुछ समझाया और फिर बोला, ‘जा, देख क्या रही है? नौघड़ को लाकर सेनापति के सामने खड़ा कर दे।’
पत्नी अंदर गई। नौघड़ और उसका पुत्र घर में एक साथ खेल रहे थे। उसने अपने पुत्र को उठाया,’ उसे छाती से लगाया, उसका मुख चूमा, उसे कुछ समझाया और फिर नौघड़ के वस्त्र पहनाकर वह सेनापति के सामने उसे बाहर ले आई।
‘क्या नाम है तुम्हारा?’ सेनापति ने पूछा। ‘ नौघड़।’ अहीर के पुत्र ने निर्भयता के साथ उत्तर दिया। और दूसरे ही क्षण सेनापति की तलवार से उसका सिर कटकर पृथ्वी पर जा गिरा।
शत्रु की सेनाएं देवायत को वृक्ष से खोलकर लौट गईं तो तब तक अपने आंसुओं को अपने नयनों में दबाए हुए अहीर दंपति बिलख उठे। रानी भी बाहर निकली और नौघड़ भी, किंतु वहां उन्होंने जो कुछ भी देखा उसे देखकर वे सबकुछ समझ गए।
‘यह तुमने क्या किया भैया!’ रानी चीख उठी।
‘वही, जो मुझे करना चाहिए था रानी माता! देवायत ने रोते हुए उत्तर दिया, मैं गरीब हूं तो क्या, हूं तो राजपूत ही।’ शरणागत के लिए बलिदान की ऐसी गाथाएं भारत के इतिहास की अपनी एक विशेषता है।

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विश्वास

मेरे आफिस के नीचे कोई 70-75 साल का एक बुढा अक्सर भीख माँगता है. आज आफिस पहुँचा तो भीग चुका था, सुबह से ही बारिश हो रही थी. जल्दी-जल्दी सीढियाँ चढते हुए उस भिखारी पर नजर पडी. एक अजीब सी मायूसी झलक रही थी चेहरे पर. बारिश के चलते लोगों की आवाजाही कम थी शायद इस लिये उदास था. तभी मेरी नजर कुछ बच्चों पर पडी जो बारिश में भीगे थे. वो दौड कर उस भिखारी के पास आये और उससे बातें करने लगे. कुछ उत्सुकता सी हुई, मैं रुक गया और उनकी बातें सुनने लगा. उन बच्चों के हाथों में पैन के बंडल थे और वो भिखारी को पैन दिखाने लगे. भिखारी ने मुस्कुरा कर कहा, “मुझे नहीं चाहिये”. नहीं बाबा हम तुम्हें ये पैन बेचने नहीं आए. तुम बस इन पर हाथ रख दो तो ये हमारे सभी पैन बिक जायेंगे, बच्चे ने बडे विश्वास के साथ कहा. वो बुढा भिखारी आँखों में आँसू लिये अपलक उस बच्चे को निहारता रहा और पैन के बंडल पर हाथ रख कर आशिर्वाद दिया. वो बच्चे खुश होकर सिग्नल की तरफ दौडे.

बुढे के चेहरे पर मायूसी की जगह अब एक चमक थी. पता नहीं क्यों? कुछ मिला तो नहीं था उसे. हाँ, कुछ ले गये थे वो बच्चे उससे. कुछ मैंने भी महसूस किया था अपने चेहरे पर. कुछ बारिश जैसी ही तो थीं वो आँसूं की बूँदें.

(ये घटना दिल्ली के क्नाट प्लेस, जनपथ की है)

 

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हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में?

एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा। बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं?

शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं।

संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते क्यों हैं?

कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया। वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है। दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं। वह आगे बोले, जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं। प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं। जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुंचा लेते हैं। इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत भी नहीं पड़ती। एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है।

शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : अब जब भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़े जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो।

उत्तराखण्ड त्रासदी पर

शिव को दोष मत दे रे ऐ बेगैरत इंसान
दुषकर्मों का मिल रहा है ये तुझको ईनाम…1

uttarakhand flood 2013

शीश झुका मैं कर रहा था अपने शिव का ध्यान
तब चुपके से आया था वो नरभक्षी हैवान…2

आफत में जब पडी हुई थी उन लोगों की जान
मानवता को कुचल रहे थे तब भी कुछ शैतान…3

पर्वत नदीयाँ वृक्ष धरा ही हैं असली भगवान
इनकी रक्षा करके ही अब बच सकती है जान…4

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मेरा वैलैंटाइन – हास्य कविता

इस बार हमने सोचा
हम भी वैलैंटाईन डे मनायेंगे
अपनी मैडम को पिक्चर दिखायेंगे
हमारा भी तो दोस्तों में रुतबा बढेगा
घरेलू लडका है फिर कोई नहीं कहेगा
बस कर लिये दो टिकट ऐडवांस में बुक
श्रीमति जी के चेहरे का देखने लायक था लुक
मुस्कुराते हुए बोलीं कार्नर की ली हैं ना
हमने कहा हाँ एक दाहिना एक बाहिना.

तो हम भी पहुँच गये मैडम के संग
देखने सलमान की लेटेस्ट फिल्म दबंग
ये फिल्म देखना का मेरा पहला टैस्ट था
मैडम का सलमान में कुछ ज्यादा ही इंट्रस्ट था
वो बाहर से तो हम पर ही मर रही थी
पर तारिफ सलमान की ही कर रही थी

फिल्म का जैसे ही हुआ इंटरवल
मैडम जी के माथे पर आ गये बल
गुस्से में बोली, “आज के दिन भी भूखा मारोगे”
जेब में रखे पैसों की क्या आरती उतारोगे
पूरा सिनेमा हाल हमें लानत भेज रहा था
फिल्म के इंटरवल में हमारा ट्रेलर देख रहा था

हम फौरन कैंटीन की तरफ दौडे
ना ब्रैड दिखे ना ही पकौडे
चारों तरफ बस माल ही माल दिख रहा था
हर काउंटर पर पापकार्न और पिज्जा ही बिक रहा था
कुछ देर तक आँखें सेकीं और दिल ठंडा किया
फिर धर्मपत्नी जी के लिये एक ठंडा लिया

ठंडा लेकर हाल में हम जैसे ही पहुँचे
श्रीमति जी पिल पडी बिना कुछ सोचे
बडे प्यार से मुझे डांट कर बोली
अभी तक ठंडे की बोतल भी नहीं खोली
हम बोले सलमान खान से ध्यान हटाओ
बोतल खुली है अब इस पर ध्यान लगाओ

ठंडा पीते ही मैडम गुर्राई
ये ठंडा है या गर्म मेरे भाई
लो जी अब तो कमाल हो गया
सलमान के सामने मैं भाई हो गया
मैंने चुपचाप से सौरी का सहारा लिया
गर्म होते मामले का वहीं निपटारा किया

जैसे तैसे सलमान की दबंगई हुई खत्म
हमारे अंदर भी आ गया थोडा सा दम
धर्मपत्नी बोली अब क्या दिलवाओगे
हम बोले अभी तक क्या दिलवाया है?
वो बोली ज्यादा मजाक नहीं चलेगा
घर जाकर धोऊं या यहीं पिटेगा?

हमने चुपचाप चुप्पी साध ली
सीधे अपने घर की राह ली
आज हमें एक शिक्षा मिली थी
कि वैलंटाईन हो या करवा चौथ
रक्षा बंधन हो या भैया दौज
सब प्यार मौहब्बत ही फैलाते हैं
और इनका मजा तब ही आता है
जब आप इन्हें घर पर ही मनाते हैं

घर पर ना होगी सलमान की दबंगाई
और ना होगी बाजार में आपकी पिटाई

 

दिल्ली पुलिस – जाँच का तरीका

पूर्वी दिल्ली में एक डी.डी.ए. की कालोनी है मयूर विहार, फेज-1. यूं तो मयूर विहार, फेज-2 और  3 भी हैं. लेकिन फेज-1 इनमें सबसे पुरानी कालोनी है. इस मयूर विहार में एक छोटा सा नर्सिंग होम है कुकरेजा नर्सिंग होम. यहाँ 24 घंटे बीमार लोगों की आवाजाही लगी रहती है.

यह नर्सिंग होम थाना पांडव नगर के अन्तृगत आता है. पिछले कुछ दिनों से मैंने यहाँ एक अजीब बात देखी. वैसे पूरी दिल्ली में दिल्ली पुलिस ने बाईकर्स के खिलाफ जंग छेड रखी है. कागज पूरे ना पाये जाने पर या तो उन्हें बंद किया जा रहा है या उनका चालान किया जा रहा है. अच्छी बात है, अपराधी तत्व इन बाईकों पर बैठ कर राहजनी, लूटपाट और चेन छपटने में उस्ताद हो गये हैं.

लेकिन जो नजारा मैंने कुकरेजा नर्सिंग होम पर देखा वह अद्भुत पाया. वाहन चेकिंग के लिये दिल्ली पुलिस बैरिकेटिंग करके वाहन चैक करती है. लेकिन यहाँ पुलिस को इतनी मेहनत भी नहीं करनी पडती. यह नर्सिंग होम एक मोड पर बना हुआ है और सामने ही एक डिसपैन्सरी भी है. पुलिस की मिलीभगत से यहाँ बहुत से ठेले वाले खडे रहते हैं. और इसके अतिरिक्त मयूर विहार, फेज-1 के पाकेट-5 पर जाने के लिये एक मुख्य सडक भी है. कुल मिला कर यहाँ बहुत ही भीड रहती है और आपको अपनी गाडी की स्पीड ना चाहते हुए भी धीरे करनी ही पडेगी. और हाँ यहाँ दिनभर एमबुलैन्स की आवाजाही भी लगी रहती है.

तो जी, अब पुलिस वालों को ये मोड जंच गया. अब वो यहाँ वाहन चैकिंग के लिये कोई बैरिकेटिंग नहीं करते और ना ही यहाँ 4-5 पुलिस वालों की आवश्यकता पडती. केवल दो पुलिस वाले चुप-चाप बाईक में यहाँ आते हैं और एक चाय वाले के यहाँ बीडी व चायपान करते हैं. इस खास नाश्ते के बाद इनकी फुर्ती देखने लायक होती है.

ये चुप-चाप चाय की दुकान में खडे रहते हैं और जैसे ही कोई मरीज आता है तो जाहिर सी बात है कि दो-चार लोग और साथ में आते हैं. और यदि ये लोग स्कूटर या बाईक पर होते हैं तो पुलिस वाले चुपचाप उनके पास चले आते हैं और फिर आवश्यक कागज और हेलमेट क्यों नहीं पहना से जेब गर्म करने की भूमिका बनाई जाती है. अब बेचारे लोग आपातस्तिथी के कारण हेलमेट ना पहनपाने या कागज ना लापाने की बात समझाने की नाकाम कोशिश करते हैं. लेकिन पुलिस वालों के कान तो भर्ती के समय ही बंद कर दिये जाते हैं. केवल बोलना है ही सिखाया जाता है इन्हें, और बोलना क्या बल्कि डांटना या धमकाना कहिये जनाब!

अब जो जैसा मिल जाये उसी के हिसाब से अस्पताल के बाहर ही उन तिमारदारों का ईलाज कर दिया जाता है. अब तिमारदार भी कुछ ले-देकर मामला रफा-दफा करने को प्राथमिकता देते हैं. अपने मरीज को भर्ती जो करवाना है. और यदि कोई व्यक्ति फुरसत में हो और पैसे देने में आनाकानी करे तो बस सीधा कोर्ट का चालान.

यह पूरी कार्यवाही सुरक्षा की दृष्टि से की गई हो ऐसा समझने का मैने भरसक प्रयास किया लेकिन सफल ना हो सका. यकीन मानिये मैंने एक दिन हिम्म्त करके उनसे पूछा कि आप सीधी तरह से सडक पर खडे होने के स्थान पर चाय वाले के पास क्यों खडे रहते हैं. तो उनका जवाब था कि लोग हमें देख कर भाग जाते हैं. और इसीलिये आप रोगीयों के रिश्तेदारों को निशाना बना रहे हैं – मैंने झट से कहा. क्यों इब तू काम सिखायगा हमैं. लिकड ले यहाँ सै. अर नहीं तो तेरेई पडलैगा एक-आधा. आया रोगीयन का ठेकेदार – जैसी लताड सुनने को मिली.

अब ये क्या तरीका है. सुरक्षा के नाम पर वाहन चैकिंग करते पुलिस वालों को देखकर जहाँ मैं सुरक्षित महसूस करता था, वहीं उनके इस रैवैये को देखकर मेरे मन में दिल्ली पुलिस की रही सही छवि और भी खराब हो गयी.

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जीवन की नाव

एक संत थे। उनके कई शिष्य उनके आश्रम में रहकर अध्ययन करते थे। एक दिन एक महिला उनके पास रोती हुए आई और बोली, ‘बाबा, मैं लाख प्रयासों के बाद भी अपना मकान नहीं बना पा रही हूं। मेरे रहने का कोई निश्चित ठिकाना नहीं है। मैं बहुत अशांत और दु:खी हूं। कृपया मेरे मन को शांत करें।’

उसकी बात पर संत बोले, ‘हर किसी को पुश्तैनी जायदाद नहीं मिलती। अपना मकान बनाने के लिए आपको नेकी से धनोपार्जन करना होगा, तब आपका मकान बन जाएगा और आपको मानसिक शांति भी मिलेगी।’ महिला वहां से चली गई। इसके बाद एक शिष्य संत से बोला, ‘बाबा, सुख तो समझ में आता है लेकिन दु:ख क्यों है? यह समझ में नहीं आता।’

उसकी बात सुनकर संत बोले, ‘मुझे दूसरे किनारे पर जाना है। इस बात का जवाब मैं तुम्हें नाव में बैठकर दूंगा।’ दोनों नाव में बैठ गए। संत ने एक चप्पू से नाव चलानी शुरू की। एक ही चप्पू से चलाने के कारण नाव गोल-गोल घूमने लगी तो शिष्य बोला, ‘बाबा, अगर आप एक ही चप्पू से नाव चलाते रहे तो हम यहीं भटकते रहेंगे, कभी किनारे पर नहीं पहुंच पाएंगे।

उसकी बात सुनकर संत बोले, ‘अरे तुम तो बहुत समझदार हो। यही तुम्हारे पहले सवाल का जवाब भी है। अगर जीवन में सुख ही सुख होगा तो जीवन नैया यूं ही गोल-गोल घूमती रहेगी और कभी भी किनारे पर नहीं पहुंचेगी। जिस तरह नाव को साधने के लिए दो चप्पू चाहिए, ठीक से चलने के लिए दो पैर चाहिए, काम करने के लिए दो हाथ चाहिए, उसी तरह जीवन में सुख के साथ दुख भी होने चाहिए।

जब रात और दिन दोनों होंगे तभी तो दिन का महत्व पता चलेगा। जीवन और मृत्यु से ही जीवन के आनंद का सच्चा अनुभव होगा, वरना जीवन की नाव भंवर में फंस जाएगी।’ संत की बात शिष्य की समझ में आ गई।

 

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एक पेच कसने की कीमत

एक बार एक कारखाने के मालिक की मशीन ने काम करना बंद कर दिया. कई दिनों की मेहनत के बाद भी मशीन ठीक नहीं हो पायी. मालिक को रोज लाखों का नुकसान हो रहा था.

तभी वहाँ एक कारीगर पहुँचा और उसने दावा किया की वो मशीन को ठीक कर सकता है. मालिक  फौरन ही उसे कार्यशाला में ले गया. मशीन ठीक करने से पहले कारीगर ने मालिक से कहा कि वो मशीन तो ठीक कर देगा लेकिन मेहनताना अपनी मर्जी से तय करेगा. मालिक का तो रोज लाखों का नुकसान रोज हो रहा था इसलिये वो मान गया.

कारीगर ने पूरी मशीन का मुआयाना किया और एक पेच को कस दिया. मशीन को चालू किया गया. मशीन ने कार्य करना शुरू कर दिया था. मालिक बहुत खुश हु़आ. कारीगर ने दस हजार रूपया मेहनताना मांगा. मालिक को बहुत आश्चर्य हुआ. केवल एक पेच कसने के दस हजार रूपय! लेकिन उसने अपना वादा निभाया और दस हजार रूपय कारीगर को देते हुये पूछा कि एक पेच कसने के दस हजार रूपय कुछ ज्यादा नहीं हैं?

कारीगर ने तुरंत जवाब दिया – साहब पेच कसने का तो केवल मैंने एक रूपया लिया है बाकि 9999 रूपय तो कौन सा पेच कसना है यह पता करने के लिये हैं.

मालिक उसका जवाब सुनकर बहुत खुश हुआ और उसे अपने कारखाने में एक उच्चपद पर नौकरी पर रख लिया.