भगवान विष्णु के आठवें अवतार
भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण ने भादों मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र के अंतर्गत वृष लग्न में अवतार लिया। श्रीकृष्ण की उपासना को समर्पित भादों मास विशेष फलदायी कहा गया है। भाद अर्थात कल्याण देने वाला। कृष्ण पक्ष स्वयं श्रीकृष्ण से संबंधित है। अष्टमी तिथि पखवाडे़ के बीच संधि स्थल पर आती है। रात्रि योगीजनों को प्रिय है और उसी समय श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हुए। श्रीमद् भागवत में उल्लेख आया है कि श्रीकृष्ण के जन्म का अर्थ है अज्ञान के घोर अंधकार में दिव्य प्रकाश।

भागवत पुराण में वर्णन है
भागवत पुराण में वर्णन है कि जीव को संसार का आकर्षण खींचता है, उसे उस आकर्षण से हटाकर अपनी ओर आकषिर्त करने के लिए जो तत्व साकार रूप में प्रकट हुआ, उस तत्व का नाम श्रीकृष्ण है। जिन्होंने अत्यंत गूढ़ और सूक्ष्म तत्व अपनी अठखेलियों, अपने प्रेम और उत्साह से आकषिर्त कर लिया, ऐसे तत्वज्ञान के प्रचारक, समता के प्रतीक भगवान श्रीकृष्ण के संदेश, उनकी लीला और उनके अवतार लेने का समय सब कुछ अलौकिक है।

मुस्कराते हुए अवतरण
जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने वाले जनार्दन के अवतार का समय था निशीथ काल। चारों ओर अंधेरा पसरा हुआ था। ऐसी विषम परिस्थितियों में कृष्ण का जन्म हुआ कि मां-बाप हथकडि़यों में जकड़े हैं, चारों तरफ कठिनाइयों के बादल मंडरा रहे हैं। इन परेशानियों के बीच मुस्कराते हुए अवतरित हुए। श्रीकृष्ण ने अपने भगवान होने का संकेत जन्म के समय ही दे दिया। कारागार के ताले खुल गए, पहरेदार सो गए और आकाशवाणी हुई कि इस बालक को गोकुल में नंद गोप के घर छोड़ आओ। भीषण बारिश और उफनती यमुना को पार कर शिशु कृष्ण को गोकुल पहुंचाना मामूली काम नहीं था। वसुदेव जैसे ही यमुना में पैर रखा, पानी और ऊपर चढ़ने लगा। श्रीकृष्ण ने अपना पैर नीचे की तरफ बढ़ाकर यमुना को छुआ दिया, जिसके तुरंत बाद जलस्तर कम हो गया। शेषनाग ने उनके ऊपर छाया कर दी ताकि वे भीगे नहीं।

पूतना का वध
कृष्ण जन्म का समाचार मिलते ही कंस बौखला गया। उसने अपने सेनापतियों को आदेश दिया कि पूरे राज्य में दस दिन के अंदर पैदा हुए सभी बच्चों का वध कर दिया जाए। इधर नंद बाबा के घर कृष्ण जन्म के उपलक्ष्य में लगातार उत्सव मनाया जा रहा था। अभी कृष्ण केवल छह दिन के ही हुए थे कि कंस ने पूतना नाम की राक्षसी को भेजा। पूतना अपने स्तनों में जहर लगाकर बालक कृष्ण को पिलाने के लिए मनोहारी स्त्री का रूप धारण कर आई। अंतर्यामी कृष्ण क्रोध से उसके प्राण सहित दूध पीने लगे और तब तक नहीं छोड़ा, जब तक कि पूतना के प्राणपखेरू उड़ नहीं गए।

ब्रह्मांड के दर्शन
बाल लीला के अंतर्गत कृष्ण ने एक बार मिट्टी खा ली। बलदाऊ ने मां यशोदा से इसकी शिकायत की तो मां ने डांटा और मुंह खोलने के लिए कहा। पहले तो उन्होंने मुंह खोलने से मना कर दिया, जिससे यह पुष्टि हो गई कि वास्तव में कृष्ण ने मिट्टी खाई है। बाद में मां की जिद के आगे अपना मुंह खोल दिया। कृष्ण ने अपने मुंह में यशोदा को संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन करा दिए। बचपन में गोकुल में रहने के दौरान उन्हें मारने के लिए आततायी कंस ने शकटासुर, बकासुर और तृणावर्त जैसे कई राक्षस भेजे, जिनका संहार कृष्ण ने खेल-खेल में कर दिया।

माखनचोर कन्हैया
माखनचोरी की लीला से कृष्ण ने सामाजिक न्याय की नींव डाली। उनका मानना था कि गायों के दूध पर सबसे पहला अधिकार बछड़ों का है। वह उन्हीं के घर से मक्खन चुराते थे, जो खानपान में कंजूसी दिखाते और बेचने के लिए मक्खन घरों में इकट्ठा करते थे। वैसे माखन चोरी करने की बात कृष्ण ने कभी मानी नहीं। उनका कहना था कि गोपीकाएं स्वयं अपने घर बुलाकर मक्खन खिलाती हैं। एक बार गोपिकाओं की उलाहना से तंग आकर यशोदा उन्हें रस्सी से बांधने लगीं। लेकिन वे कितनी भी लंबी रस्सी लातीं, छोटी पड़ जाती। जब यशोदा बहुत परेशान हो गईं तो कन्हैया मां के हाथों से बंध ही गए। इस लीला से उनका नाम दामोदर (दाम यानी रस्सी और उदर यानी पेट) पड़ा।

स्नान की मर्यादा
यमुना किनारे काली नाग का बड़ा आतंक था। उसके घाट में पानी इतना जहरीला था कि मनुष्य या पशु-पक्षी पानी पीते ही मर जाते थे। कृष्ण ने नाग को नाथ कर वहां उसे भविष्य में न आने की हिदायत दी। कृष्ण जब गाय चराने जाते, तो उनके सभी सखा साथ रहते थे। सब कृष्ण के कहे अनुसार चलते थे। ब्रह्मा जी को ईर्ष्या हुई और एक दिन सभी गायों को वे अपने लोक भगा ले गए। जब गाएं नहीं दिखीं तो गोकुलवासियों ने कृष्ण पर गायों चुराने का आरोप लगा दिया। कृष्ण ने योगमाया के बल पर सभी ग्वालों के घर उतनी ही गाएं पहुंचा दीं। ब्रह्मा ने जब यह बात सुनी तो बहुत लज्जित हुए। इंद्र पूजा का विरोध करते हुए सात वर्ष की आयु में सात दिन और सात रात गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली में उठाकर कृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से गोकुल वासियों की रक्षा की। बाल लीला में ही कृष्ण ने एक बार नदी में निर्वस्त्र स्नान कर रहीं गोपिकाओं के वस्त्र चुराकर पेड़ में टांग दिए। स्नान के बाद जब गोपीकाओं को पता चला तो वे कृष्ण से मिन्नतें करने लगीं। कृष्ण ने आगाह करते हुए कहा कि नग्न स्नान से मर्यादा भंग होती है और वरुण देवता का अपमान होता है, वस्त्र लौटा दिए।

रासलीला का आयोजन
श्रीकृष्ण ने दिव्य व अलौकिक रासलीला ब्रजभूमि में की थी। जब सभी रस समाप्त होते हैं, वहीं से रासलीला शुरू होती है। रास लीला में प्रेम की अनवरत धारा प्रवाहित होती है। श्रीकृष्ण अपनी संगीत एवं नृत्य की कला से गोपिकाओं को रिझाते थे। इस रास में हिस्सा लेने वाली सभी गोपिकाओं के साथ कृष्ण नाचते थे। जितनी गोपी उतने ही कृष्ण। रसाधार श्रीकृष्ण का महारास जीव का ब्रह्मा से सम्मिलन का परिचायक और प्रेम का एक महापर्व है।

जीवन में राधा
मथुरा जाने पर सबसे पहले कृष्ण ने कुब्जा को सुंदर नारी के रूप में परिवर्तित किया। इसके बाद कंस का वध किया, नाना उग्रसेन को गद्दी पर बैठाया, देवकी के मृत पुत्रों को लेकर आए और माता-पिता को कारागार से मुक्ति दिलाई। कन्हैया के मित्र तो गोकुल के सभी बालक थे, लेकिन सुदामा उनके कृपापात्र रहे। अकिंचन मित्र सुदामा को वैभवशाली बनाने में दामोदर ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ती बनकर आईं। जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी।

गीता का उपदेश
जब कृष्ण किशोर वय के हो गए तो महाभारत युद्ध की आहट आने लगी थी। युधिष्ठिर अपनी पत्नी को जुए में हार गए। भरी सभा में दुर्योधन और दु:शासन जब द्रौपदी का चीर हरण करने लगे तो जनार्दन ने असहाय हो चुकी इस अबला की रक्षा की। आगे चलकर सुभद्रा का हरण किया। महाभारत युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। उपदेश देने के लिए शांत जगह चाहिए, लेकिन कृष्ण वहां ज्ञान दे रहे हैं जहां अट्ठारह अक्षौहिणी सेना के कोलाहल से किसी को कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा है। कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाकर अर्जुन का मोहभंग किया। जैसे उद्धव में ज्ञान था, लेकिन भक्ति नहीं थी, उसी प्रकार अर्जुन में भक्ति तो थी, लेकिन ज्ञान नहीं था। गीता में उपदेश देकर उन्होंने मोहग्रस्त अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार किया। भगवान ने कहा कि जो मुझे जिस तरह याद करता है, मैं भी उसी प्रकार उस भक्त का भजन करता हूं। जरासंध से युद्ध कर श्रीकृष्ण ने सोलह हजार कन्याओं को उसके चंगुल से छुड़ाया।

विपत्तियों से जूझे
विपत्तियों से घिरे जीवन में भी कृष्ण कभी व्यथित नहीं हुए। जिसकी आंखें कारागार में खुलीं, माता-पिता के लालन-पालन से वंचित रहे, गौएं चराकर बचपन बिताया, कंस ने जान लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जन्मस्थान व गोकुल छोड़कर द्वारका में शरण लेनी पड़ी, युद्ध से भागकर रणछोड़ कहलाए, सत्यभामा के घर में स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगा, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में पत्तल और जूते उठाने का दायित्व संभाला, अर्जुन के सारथी बने, अपनी चार अक्षौहिणी नारायणी सेना दुर्योधन को देकर खुद निहत्थे युद्ध में गए, गांधारी के श्राप को हंसते-हंसते स्वीकार किया और अपने कुल को अपने सामने नष्ट होते देखा, ऐसे परमवीर की मृत्यु जंगली जीव की तरह व्याध के हाथों हुई।

यह लेख नवभारत टाइम्स से लिया गया है

arjun ka sarthi, अर्जुन के सारथी, अलौकिक रासलीला, कंस, कंस का वध, काली नाग आतंक, गांधारी का शाप, गीता उपदेश, गीता का उपदेश, गोकुल, जरासंध से युद्ध, तृणावर्त, दुर्योधन, दुर्योधन और दु:शासन, द्रौपदी का चीर हरण, द्वारका, नारायणी सेना, पूतना का वध, बकासुर, ब्रह्मांड के दर्शन, भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भागवत पुराण, माखनचोर कन्हैया, माखनचोरी की लीला, विराट रूप, शकटासुर, श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण का महारास, श्रीकृष्ण का मुस्कराते हुए अवतरण, श्रीकृष्ण जन्म, श्रीमद् भागवत, सुभद्रा का हरण, परम अलौकिक श्रीकृष्ण की लीला, bakasur, bhagvad puran, brahmand ke darshan, draupdi ka cheer haran, duryodha aur dushashan, duryodhan, gandhari ka shrap, geeta updesh, jarasandh, jarasandh se yudh, kalia naag, kalia naaga ka ant, kans, krishna, makhan chor, pootna vadh, shaktasur, sri krishna, srimad bhavad, sunhadra ka haran, virat roop, vishnu ka aathva avtar, param alokik shri krishna ki leela

6 विचार “परम अलौकिक श्रीकृष्ण की लीला&rdquo पर;

टिप्पणियाँ बंद कर दी गयी है।