The WordPress.com stats helper monkeys prepared a 2011 annual report for this blog.
Here’s an excerpt:
The Louvre Museum has 8.5 million visitors per year. This blog was viewed about 190,000 times in 2011. If it were an exhibit at the Louvre Museum, it would take about 8 days for that many people to see it.
प्राचीन समय में वाराणसी के राज पुरोहित हुआ करते थे- देव मित्र। राजा को राज पुरोहित की विद्वता और योग्यता पर बहुत भरोसा था। राजा इसलिए उनकी हर बात मानते थे। प्रजा के बीच भी राज पुरोहित का काफी आदर था। एक दिन राज पुरोहित के मन में सवाल उठा कि राजा और दूसरे लोग जो मेरा सम्मान करते हैं, उसका कारण क्या है? राज पुरोहित ने अपने इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए एक योजना बनाई।
अगले दिन दरबार से लौटते समय उन्होंने राज कोषागार से एक स्वर्ण मुद्रा चुपचाप ले ली, जिसे कोष अधिकारी ने देखकर भी नजरंदाज कर दिया। राज पुरोहित ने दूसरे दिन भी दरबार से लौटते समय दो स्वर्ण मुद्राएं उठा लीं। कोष अधिकारी ने देखकर सोचा कि शायद किसी प्रयोजन के लिए वे ऐसा कर रहे हैं, बाद में अवश्य बता देंगे। तीसरे दिन राज पुरोहित ने मुट्ठी में स्वर्ण मुद्राएं भर लीं। इस बार कोष अधिकारी ने उन्हें पकड़कर सैनिकों के हवाले कर दिया। उनका मामला राजा तक पहुंचा। न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठे राजा ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि राज पुरोहित द्वारा तीन बार राजकोष का धन चुराया गया है। इस दुराचरण के लिए उन्हें तीन महीने की कैद दी जाए ताकि वह फिर कभी ऐसा अपराध न कर सकें।
राजा के निर्णय से राज पुरोहित को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था। राज पुरोहित ने राजा से निवेदन किया, ‘राजन मैं चोर नहीं हूं। मैं यह जानना चाहता था कि आपके द्वारा मुझे जो सम्मान दिया जाता है, उसका सही अधिकारी कौन है, मेरी योग्यता, विद्वता या मेरा सदाचरण। आज सभी लोग समझ गए हैं कि सदाचरण को छोड़ते ही मैं दंड का अधिकारी बन गया हूं। सदाचरण और नैतिकता ही मेरे सम्मान का मूल कारण थी।’ इस पर राजा ने कहा कि वह उनकी बात समझ रहे हैं मगर दूसरों को सीख देने के लिए उनका दंडित होना आवश्यक है।
2 अक्तुबर (2009), शुक्रवार को छुट्टी थी. तीन दिनों का लबा सप्ताहांत. हम तीन दोस्त मै, रमेश और महेन्द्र ने झटपट घूमने का प्रोग्राम बनाया. कहां जाया जाये – यह सोचना हमेशा की तरह मेरे हिस्से मे ही आया. हरिद्वार, ऋषिकेष, मंसूरी, शिमला घूम-घूम कर हम बोर हो चुके थे. भरतपुर जाने का हमारा प्रोग्राम कई बार रद्द हो चुका था इसलिये इस बार वहीं जाने का एलान कर दिया.
जाने की टिकिट बुक नहीं थी. निजामुद्दीन से ताज एक्सप्रैस पकडकर हम पहले मथुरा जंकश्न तक गये (टिकिट 50 रूपय). दिल्ली से मथुरा तक करीब दो घंटे लगते हैं. वहां से निजामुद्दीन से ही आने वाली गोलडन टैम्पल में भरतपुर का जनरल टिकिट लेकर स्लीपर कोच मे सवार हो लिये (टिकिट 28 रूपय). भरतपुर मथुरा से अगला स्टेशन ही है और दूरी है करीब तीस किलोमीटर है .केवल आधा घंटा लगता है. ट्रेन में सवार होते ही सबसे पहले मुलाकात हुई टी. टी. साहब से जिसका अंदेशा मुझे पहले से ही था. टी. टी. साहब ने जनरल टिकिट लेकर स्लीपकर में यात्रा करने के उपलक्ष में जुर्माने की ईनामी राशि 1200 रूपय घोषित कर दी. बाद मे केवल एक व्यक्ती का जुर्माना – तीन सौ पचास रूपय देने पर बात बन गयी. जुर्माना देने के बाद थोडी शांती मिली. हालांकि रिश्व्त देने की नाकाम कोशिश भी की गई लेकिन कुछ फायदा ना हो सका. सिविल ड्रैस के टी. टी. को देख कर एक बार तो लगा की नीरज जाट जी की तर्ज पर इससे आई-कार्ड पूछ ही लूं. लेकिन फिर 1200 रूपय का ध्यान आते ही विचार बदल गया.
पौने ग्यारह बजे हम भरतपुर के स्टेशन की शोभा बढा रहे थे. यह पांच प्लेटफार्म वाला एक छोटा सा स्टेशन है. प्यास बहुत जोर से लग रही थी. ठंडे पानी का कूलर स्टेशन पर लगा हूआ था. पानी पिया तो बहुत ही खारा था पानी पिया ही नही गया. स्टेशन से बाहर निकले तो बहुत से ओटो वाले खडे हुए थे. भरतपुर में रस्सी से स्टार्ट होने वाले ओटो बहुत हैं.
हमने चालीस रूपय में केवलादेव पार्क के लिये ओटो किया. भरतपुर मे सडकों की हालत बहुत खस्ता है. जगह-जगह गढ्ढे और टूटी सडक के ही दर्शन होते हैं. स्टेशन से बाहर निकलते ही हलवाई की दुकानें नजर आईं जहाँ खजला बिक रहा था. खजला एक तरह का पकवान है जो मैदे से बनता है. यह फीका और मीठा दोनो तरह का होता है. देखने मे यह एक बडे आकार का भठुरे जैसा दिखता है.
खजला
बारह बजे हमने केवलादेव पार्क के सामने बने होटल “द पार्क रिजैन्सी” में प्रवेश किया.
Hotel The Park Bharatpur
बाहर से देखने में यह होटल बहुत ही शानदार दिखता है. यहां हमे एक एसी डबल बैडरूम कमरा 850 रूपय मे मिल गया. हम तीन लोग थे सो ज्यादा मंहगा नहीं लगा. होटल में घुसते ही तबीयत प्रसन्न हो गेई. रूम बहुत ही खुला और बडा था. रूम के सामने बहुत बडा पार्क था जिसमें बहुत सी टेबल और चेयर लगी हुई थीं. अक्तुबर से मार्च तक यहां सीजन रहता है शायद इसीलिये होटल को रैनोवेट भी किया जा रहा था. रूम मे एक बडा सा टीवी और छोटा सा फ्रिज भी था. हमारे होटल के बिल्कुल सामने था होटल प्रताप पैलेस.
Hotel Pratap Palace Bharatpur
भूख बहुत लगी थी इसलिये फटाफट बटर चिकन (160 रूपय हाफ) और बटर नान (25 रूपय) आर्डर कर दिया. बटर चिकन लजवाब था और नान भी बहुत सौफ्ट थे. दोपहर का खाना खा कर हमने सबसे पहले केवलादेव पार्क जाने का निश्चय किया. लेकिन वेटर ने हमें बताया कि वहां जाने का यह सही समय नहीं है. वहां सुबह-सुबह जाना चाहिये. सुबह पक्षी खाने की तलाश में बाहर निकलते हैं. लेकिन हमें उसकी बात पसंद नहीं आयी और हम सीधा निकल लिये पार्क की तरफ. इस पार्क को यहां घना (dense) के नाम से ज्यादा जाना जाता है.
होटल से बाहर निकलते ही रिक्शे वाले पीछे पड गये. लेकिन हम रिक्शा केवल पार्क के बाहर से ही लेना चाहते थे. मुझे पता था कि सरकार द्वारा लाइसेंस शुदा रिक्शे केवल पार्क के बाहर से ही मिलते हैं. लेकिन बाद में पता चला कि यहां 123 रिक्शे वालों का ग्रुप है जो तीन भागों में बंटा हुआ है. एक ग्रुप पार्क के बाहर, एक पार्क के अंदर चैक पोस्ट पर और एक ग्रुप पार्क के बाहर बने होटलों पर सैलानीयों का इंतजार करता है. अपने रिक्शे चालक राजू और इन्दर से पूछने पर पता चला की इनकी कार्य प्रणाली बहुत ही साधारण है. ये सुबह पांच बजे पार्क के गेट पर इक्ठ्ठा होते हैं और 1 से लेकर 123 नम्बर तक की पर्चीयां बनाते हैं. जिसके हिस्से जो पर्ची आती है बस वही उसका नम्बर होता है.
राजू और ईन्दर हमें लेकर पार्क में चल दिये. यहाँ बीडी-सिगरेट पीने पर सख्त मनाही है. बीडी-सिगरेटे से जंगल में आग का खतरा बना रहता है. लेकिन फिर भी कुछ लोग ईधर-उधर छुप कर सिगरेट पी रहे थे. राजू और ईन्दर हमें बार-बार दूरबीन किराये पर दिलवाने की जिद कर रहे थे. लेकिन हमने साफ मना कर दिया.
बातों-बातों में पता चला कि ईन्दर दिल्ली में मेरे घर के पास त्रिलोक पुरी का रहने वाला था. और 84 के दंगों में परिवार के साथ यहाँ आ गया था. ये पता चलने के बाद ईन्दर ने हमें अपने रिक्शे में रखी गयी दूरबीन फ्री में दे दी. दोनों रिक्शे वालों ने हमें बताया कि उनकी यहाँ ट्रेनिंग होती है और उन्हें ईंग्लिश के साथ-साथ बहुत सी यूरोपीयन भाषाओं की जानकारी भी दी जाती है. उन्होंने हमें ईंग्लिश, जर्मनी, स्पैनिश, जापानी आदि भाषाओं में बहुत सी बातें बोल कर भी बताईं. सुनने में यह सब अच्छा लग रहा था. लेकिन बाहर के सैलानीयों से टिप लेने का ये अच्छा साधन है. यहाँ एक बात और देखी कि लोकल टूरिस्ट के आने पर रिक्शे वाले ज्यादा खुश नहीं होते. क्योंकि उन्हें उनसे टिप नहीं मिलती.
बहुत प्यास लगी हैबन्दर फोन की तार ठीक कर रहा है
राजू और ईन्दर ने हमें पार्क में एक मन्दिर भी दिखाया. उस मन्दिर में हमें एक तालाब में बहुत बडे-बडे कछुए दिखे उन्हें हमने आटे की बडी-बडी गोलीयाँ भी खिलायीं. वो कछुए बिल्कुल आदमखोर लग रहे थे. मन्दिर के पुजारी ने हमें बताया कि एक बार एक नील गाय इस तालाब में गिर गयी तो ये कछुए आधे घंटे में उसे चट कर गये.
कछुएआदमखोर कछुएपार्क में सूर्यास्त
शाम को करीब सात बजे तक हम पार्क घूम चुके थे. वापस आते समय रास्ते में हमें दो सियार भी दिखे. राजू और ईन्दर ने हमें होटल छोडा दिया. हमने उन्हें रू. 600/- दिये जिसमें रिक्शे का किराया और टिप भी शामिल थी.
Raju aur Inder Bharatpur
अगले दिन हम भरतपुर के लोहागढ किले को देखने गये. यह किला भरतपुर जाट शासकों द्वारा निर्मित किया गया था. दुनिया में यह किला अभी तक अभेद है. इसे अभी तक जीता नहीं जा सका है. इस किले में एक म्यूसियम भी है जिसमें जाट शासकों के चित्र, पांडुलिपी, हथियार बंदूकें आदि रखीं हैं.
करीब चार बजे हम वापिस होटल पहुँच चुके थे. होटल आते ही हमें वापसी की टिकीट बुक करवानी थी. होटल में इंटरनैट की सुविधा नहीं थी और आस-पास कोई साईबर कैफे भी नहीं मिला. तब हमने दिल्ली के एक मित्र को फोन करके कोटा जनशताब्दी 2059 (अब 12059) में तीन सीट बुक करवादी. और बडी मुश्किल से एक साईबर कैफे से टिकीट का प्रिंट निकाला.
अब वापसी कि चिंता खत्म थी. शाम को किसी ने हमें बताया कि पास में ही दशहरा-मेला लगा हुआ है. हमने एक ट्रैक्टर रोका और बिना पूछे ही उस पर चढ गये. उसने हमें बताया कि वो भी मेले में ही जा रहा है. बस सुनकर मजा आ गया. मेले में सबसे पहले हम पहुँचे मौत का कुँआ देखने. हालत खराब हो गयी. कितना रिस्क है उसमें. लेकिन रोजी-रोटी के लिये लोग सब कुछ करते हैं.
आप मेले की कुछ फोटो देखीये.
ट्रैक्टर की फ्री सवारीदशहरा मेला भरतपुरमेले में भी खजला ही खजला थादशहरा मेला भरतपुरमेले का मजा
अगले दिन हमने कोटा जनशताब्दी पकडी जो करीब डेढ घंटा लेटे थी. जन शताब्दी में पहली बार सफर किया था मुझे अच्छा लगा. लेकिन वहाँ हिजडे लोगों से खुले आम पैसे मांग रहे थे. लेकिन हम लोगों ने उन्हें पैसे नहीं दिये. हालांकि उन्होंने बहुत कोशिश की लेकिन हम सख्ती से पेश आये और उनकी दाल नहीं गलने दी. करीब डेढ बजे हम निजामुद्दीन पहुँच चुके थे.
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शनिवार 19 नवम्बर को मैं अपने मित्र रमेश के साथ बहुप्रतिक्षित भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले की सैर करने गया. दिल्ली मैट्रो यहाँ आने का सबसे सुगम साधन माना जाता है. लेकिन स्टेशन से बाहर निकलते ही हजारों की संख्या में लाईन में लगे लोगों को देखकर सारा उत्साह गायब हो गया. टिकिट चैक करवाने और चैकिंग करवाने के लिये लंबी लाईन लगी हुई थी. इसमें करीब 40 मिनिट लगे. यहाँ से प्रगती मैदान का गेट न. 10 पडता है. पुलिस वालों ने यह गेट बंद कर दिया था और लोगों को अगले गेट न. 2 पर भेज रहे थे. लेकिन लोग लाईन में लगे हुए इतने थक चुके थे कि वो वहाँ से हिलने का नाम नहीं ले रहे थे. हारकर पुलिस वालों को गेट खोलना ही पडा.
Entrance from Gate No. 10 (Metro Side)
इस गेट पर एक बात देखकर बडी हैरानी हुई. वह यह कि गेट के बाहर पंद्रह रूपय वाली पानी की बोतल खुलेआम बीस रूपय में बिक रही थी. पता नहीं इतने बडे व्यापार मेले में सरकार क्यों इन लोगों पर लगाम नहीं लगाती. थके हारे लोगों को पैसे से ज्यादा अपनी प्यास सता रही थी. ऐसे में किसी का भी ध्यान इस बात की तरफ नहीं जा रहा था.
हम करीब एक बजे गेट के अंदर पहुँच चुके थे. सामने लगे खंभे पर ऐयर इंडिया के साहब स्वागत करते नजर आये. बाहर जितनी भीड नजर आ रही थी अंदर उसके मुकाबले काफी कम थी.
Air India Welcomes YouWay
सबसे पहले हमने सरस मेले की तरफ चल दिये. सरस मेला ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 1999 – 2000 के दौरान ग्रामीण उत्पाद को बढ़ावा देने और ग्रामीणों के लिये स्वरोजगार का निर्माण करने के लिए उठाए गए कदमों में से एक है. 1999 से अबतक सरस मेला हर वर्ष भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले का हिस्सा बनता आया है.
Saras Mela IITF 2011
यहाँ मैंने और रमेश ने एक गर्म जैकेट रू. 650/- की पसंद आयी. मोल-भाव करने के बाद दुकानदार बलबीर ने रू. 475/- प्रति जैकेट हमें दे दी. खरीदने से पहले हमने अच्छी तरह से पहन कर खूब फोटो खिंचवायीं. गर्म टोपी जो कि शिमला आदि पहाडों पर 30-40 रूपय में मिल जाती है उसे बलबीर रू. 350/- में बेच रहे थे. वो डील हमें पसंद नहीं आयी.
सरस मेले में काफी सारी घर सजाने की वस्तुयें सस्ते दामों में उपल्बध थीं. बस पैसे होने चाहियें.
Ramesh at IITF 201
यहाँ से निकलते ही सामने नजर आया मेरा प्रिय भारतीय रेलवे. यहाँ काफी सारे कोच और ईंजनों के माडल्स रखे थे. हर साल की तरह. बीच में एक कोच का बडा माडल भी नजर आया. यहाँ जो नयी बात दिखी वो थी नुक्कड नाटक. जिसमें कलाकारों ने बताया कि किस तरह लोग रेल यात्रा में लोगों को कुछ खिला-पिला कर उन्हें बेहोश कर कर लूट लिया जाता है.
Bhartiya Rail IITF 2011
इसके बाद हम मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, आंध्र प्रदेश आदि मंडपों में घूमें. बहुत सी जानी पहचानी चीजें नजर आयीं. पंजाब मंडप में अमृतसरी पापड-वडियों वाले सरदार जी खुले-आम पालीथीनों में सामान बेचते नजर आये. इस मेले में पालीथीन के प्रयोग पर बैन लगा हुआ था. पूछने पर सरदार जी बोले की आप मत लीजीये पालीथीन हमें तो सामान बेचना है हम तो यूज करेंगे ही.
पंजाब मंडप की प्रसिद्ध खीर नदारद थी. इस खीर पर हर वर्ष लोग पागलों की तरह टूटते हैं और खीर कुछ ही घंटों में खत्म हो जाती है. आंध्र प्रदेश मंडप में एक भाई साहब “कैसा भी दाग छुडायें” के नाम पर कुछ कैमीकल जैसी चीजें बेच रहे थे. बहुत सी जांच-पडताल करने के बाद रमेश ने एक सैट खरीद लिया. आंध्र प्रदेश मंडप से हमने बहुत से अचार, सौंफ, राम-लड्डू इत्यादि भी खरीदे. सभी सामान हमें प्लास्टिक की पालीथीनों में ही दिया गया.
अबतक करीब चार बज चुके थे भूख चरम पर थी. हम सीधे प्रगति फूड कोर्ट कि तरफ भागे. वहाँ दाल मक्खनी-नान (रू. 70) और पनीर-नान (रू. 80) में लिये. यहाँ खाना खाने के लिये बहुत से टेबल और कुर्सियां लगी थीं. कम-से-कम यहाँ 700-800 लोग एक साथ खाना खा रहे थे. ये हमें बहुत अच्छा लगा. इस बार किसी भी मंडप में खाने की सुविधा नहीं थी. लेकिन यहाँ पर भी पानी की बोतल और कोल्ड ड्रिंक की बोतल अधिकतम मूल्य से ज्यादा दामों में मिल रही थी. आयोजकों को इसकी कोई चिंता नहीं थी.
शाम के करीब 5.30 बज चुके थे और थकान भी बहुत हो गयी थी. अब घर जाने की जल्दी होने लगी. हम गेट न. 3 से बाहर निकले और सीधा बस पकडी मंडी हाऊसे के लिये. हम प्रगती मैदान से मैट्रो नहीं पकडना चाहते थे क्योंकि प्लेटफार्म पर पहुंचने के लिये इस स्टेशन पर कम से कम एक घंटा लग जाता.
मंडी हाऊसे से मैट्रो पकडकर हम 40 मिनिट में अपने घर पहुंच चुके थे.
God at IITF 2011MeRamesh at IITF 2011Bhagwan JIDelhi Pavilion at IITF 2011
अहं नामक व्यक्ति को बहुत गुस्सा आता था। वह जरा – जरा सी बात पर क्रोधित हो जाता था। वह उच्च शिक्षित और उच्च पद पर आसीन था। उसके क्रोध को देखकर एक सज्जन ने उसे सुदर्शन नामक ऋषि के आश्रम में जाने को कहा। अहं ने उस सज्जन की यह बात सुनते ही उसे गुस्से से घूरा और बोला , ‘मैं क्या पागल हूं जो सदुर्शन ऋ षि के आश्रम में जाऊं?
मैं तो सर्वश्रेष्ठ हूं और मेरे आगे कोई कुछ नहीं है। ‘ उसकी इस बात को सुनकर सज्जन वहां से चला गया। धीरे – धीरे सभी अहं से दूर – दूर रहने लगे। उसे भी इस बात का अहसास हो गया था। एक दिन वह बेहद क्रोध में सुदर्शन ऋ षि के आश्रम में जा पहुंचा। सुदर्शन ऋषि ने अहं के क्रोध के बारे में सुन रखा था। उन्होंने उसके क्रोध को दूर करने की मन में ठानी। वह जानबूझकर बोले , ‘ कहो नौजवान कैसे हो ? तुम्हें देखकर तो प्रतीत होता है कि तुममें दुर्गुण ही दुर्गुण भरे हुए हैं। ‘
सुदर्शन ऋषि की बात सुनकर अहं को बेहद क्रोध आया । क्रोध में उसकी मुट्ठियां भिंच गईं और वह दांत पीसते हुए सुदर्शन ऋ षि के साथ सबको अनाप – शनाप बकने लगा। क्रोध में उसकी उल्टी – सीधी बातें सुनकर आश्रम में अनेक लोग एकत्रित हो गए किंतु किसी ने भी उसे कुछ नहीं कहा । बोल – बोलकर जब वह थक गया तो चुपचाप नीचे बैठ गया।
बेवजह क्रोध में बोलकर उसका सिर दर्द हो गया था और गला भी सूख गया था। उसकी ऐसी स्थिति देखकर सुदर्शन ऋ षि बोले ,’ कहो नौजवान क्त्रोध ने तुम्हारे सिवाय किसी और का अहित किया है। सभी दुर्गुण पहले स्वयं को विनाश के कगार पर लेकर आते हैं। तुम्हारे क्रोध ने तुमको सबसे दूर कर दिया है जबकि तुम अत्यंत ज्ञानी एवं शिक्षित व्यक्ति हो। ‘ ऋ षि की सारी बातें अहं ने सुनी और उसे अपनी गलती का पश्चाताप् हुआ। उसने उसी दिन से अपने व्यक्तित्व में से क्रोध को दूर करने का निश्चय कर लिया।
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मयूर यूथ क्लब (पंजि) द्वारा मयूर विहार, फेज-1 में होने वाली रामलीला के ताजा समाचार
बुधवार, दिनांक 28 सितम्बर 2011
कल की रामलीला दुर्गा वंदना से शुरू की गई और इसके बाद दशरथ दरबार का द्र्श्य दिखाया गया. दशरथ का पात्र निभाने वाले श्री अरूण कुमार जी का अभिनय दर्शनीय था. दशरथ जी संतान ना होने से चिंतित थे. तब गुरू वशिष्ठ जी ने उनकी चिंता को दूर किया और श्रृंगी ऋषि जी को बुलाकर उनसे कुछ उपाय करने के लिये कहा. तब श्रृंगी ऋषि जी ने पुत्रेष्ट य़ज्ञ किया और राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ.
इसके बाद राजा जनक द्वारा हल चलाना और घडे में से सीता का जन्म होने की लीला दिखाई गई. मारिच-सुबाहु आदि राक्षसों का प्रजा को लूटना और विश्वामित्र जी को तंग करना. विश्वामित्र जी का दशरथ से साहयता मांगेने जाने तक की लीला कल सम्मपन्न हो गई.
राम जन्म पर डांडिया डाँस “अवध में जन्में राम” बहुत ही दर्शनीय बना. लोगों ने लीला का बहुत ही आन्नद उठाया.
आज कि लीला का मुख्य आकर्षण है – विश्वामित्र द्वारा दशरथ से राम-लक्ष्मण को मांग कर ले जाना, ताडिका वध, सुबाहु वध, मारिच का घायल होना और भाग जाना, अहिल्या उद्दार, सीता पुष्पवाटिका आदि.
मयूर यूथ क्लब द्वारा प्रति वर्ष आयोजित की जाने वाली रामलीला का शुभारम्भ कल मंगलवार, दिनांक 27.09.2011 से शुरू हो चुका है. लीला का उदघाटन श्री सुनील वैद्य् जी (विधायक त्रिलोक पुरी, दिल्ली) के कर कमलों द्वार हुआ.
कल गणेश वन्दना करने के बाद दशरथ द्वार अनजाने में श्रवण कुमार की हत्या करना, शान्तनु व ज्ञानवती द्वारा दशरथ को श्राप देना,रावण, कुम्भकरण व विभीषण द्वार तपस्या करना व रावण द्वारा कैलाश उठाने तक की लीला का मंचन किया गया.
इस वर्ष पुलिस द्वारा अत्यधिक स्ख्ती बर्ती जा रही है. इस वर्ष आठ सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाये गये हैं और जिन के द्वारा एक ही नियंत्रण कक्ष से पुरे परिसार में नजर रखी जाएगी. पुलिस वालों के लिये मचान बनायी गयी है जहाँ बैठकर वो दर्शकों पर नजर रख सकेंगे. आयोजकों व कलाकारों को भी बिना पहचान पत्र के अनदर नहीं आने दिया जा रहा. रामलीला के लिये आने वाले हर सामान की गहन जाँच की जा रही है. बिना पुलिस की इजाजत के परिंदा भी पर नहीं मार सकता.
लेकिन क्या जटायु को भी पर मारने के लिये पुलिस की आवश्यकता होगी…… हा..हा..हा..
परिसर के नजदीक व आस-पास कोई भी गाडी खडी करना मना है. किसी भी प्रकार के स्टाल, ठेली, रेहडी इत्यादि लगाने की स्ख्त मनाही है.
एक युवक बड़े उग्र स्वभाव का था। वह बात-बात पर आग-बबूला हो जाता और संन्यासी बनने की धमकी देता था। एक दिन उसके परिवार वालों ने उसके व्यवहार से तंग आकर उसे संन्यास लेने की छूट दे दी। वह घर से निकल कर एक संत के आश्रम की ओर चल दिया और संत को संन्यास लेने की अपनी इच्छा बताई। संत उसके बारे में सब कुछ सुन चुके थे। वह बोले, ‘संन्यास की दीक्षा तुम्हें कल दी जाएगी। उससे पहले तुम्हें जो करने को कहा जाए, वह तुम्हें शांतिपर्वूक करना होगा।’ युवक मान गया।
संत ने उसे नदी में स्नान करने को कहा। सर्दी के मौसम में नदी में पैर डालते ही युवक की जान निकल गई। वह जैसे-तैसे नहाकर लौटा तो उसे आश्रम के संचालक ने आश्रम की सफाई करने का आदेश दिया। पूरे आश्रम की सफाई करते-करते उसके हाथ दर्द करने लगे तो संचालक ने उससे आश्रम के लिए सब्जी काटने को कहा। सब्जी काटते-काटते उसका हाथ कट गया। वह चिल्ला उठा। दोपहर में उसे नमक मिले करेले खाने को मिले। भूखा-प्यासा वह करेलों पर झपटा। जैसे ही उसने एक करेला मुंह में डाला तो कड़वाहट से उसका मुंह भर गया और उसने उसे थूक दिया। वह गुस्से से संत के पास जाकर बोला, ‘क्या संन्यास लेना इसी को कहते हैं?’
संत मुस्करा कर युवक से बोले, ‘संन्यास में प्रवेश करने वालों को पग-पग पर मन को मारना पड़ता है। परिस्थितियों से तालमेल बिठाना, संयम बरतना और अनुशासन का पालन करना पड़ता है। इसी अभ्यास के लिए संन्यास लिया जाता है। गेरुए वस्त्रों को धारण कर कोई भी संन्यासी कहला सकता है किंतु स्वभाव से संन्यासी होना आसान नहीं है।’ यह सुनकर युवक लज्जित हो गया और बोला, ‘यदि क्रोध किए बगैर शांतिपूर्वक रहना ही संन्यास है तो यह काम मैं घर में रहकर ही कर सकता हूं।’ इसके बाद वह घर लौट आया। उसका स्वभाव पूरी तरह बदल गया।
कल “मैं अन्ना हजारे” का नारा कुछ ही घंटों मे टीवी और अखबारों से होता हुआ आनलाईन कम्युनिटी द्वारा विदेशों तक पहुँचा उसके कुछ आंकडे.
आवाज:
आवाज, एक अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन समुदाय है, जिसके करीब 7.5 लाख से अधिक सदस्य हैं. आवाज ने अन्ना हजारे के समर्थन में आवाज उठाई और एक अभियान “Free Anna and Free India of Corruption” किया है. इस अभियान के समर्थन में अब तक करीब 72,000 लोगों ने हस्ताक्षर किये हैं. करीब 33,000 लोगों ने अभियान शुरू होने के ढाई घंटे में ही इस पर हस्ताक्षर कर दिये थे.
फेसबुक:
India Against Corruption (भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत) एक फेसबुक पेज है जिसे करीब 1,60,000 लोगों ने पसंद किया है.
मेरा नेता चोर है
यह फेसबुक पर एक और संस्करण है. करीब 3000 लोग इस पेज से जुडे हैं.
वाच वीडियो:
अन्ना और अन्ना से संबंधित वीडियो और क्लिप्स को यू ट्यूब पर अब तक करीब 1 लाख लोग देख चुके हैं.
ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान:
thepetitionsite.com वैबसाईट पर एक ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से अन्ना हजारे का समर्थन करने व भारत में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये करीब 7226 हस्ताक्षर पहुँच चुके हैं. इसका लक्ष्य 10,000 लोगों को जोडना है.
बल्क एस. एम. एस पर बैन:
देश भर में बहुत सी दूरसंचार कंपनीयों ने बल्क एस. एम. एस पर बैन लगा दिया है. हालांकि सरकार की तरफ से इस पर कोई पाबंदी नहीं है.