कल शाम करीब आठ बजे मैं घर पहुँचा तो मेरी डेढ साल की बेटी “पापा आ गये-पापा आ गये” की रट लगा कर गले से लिपट गयी और हमेशा की तरह जिद करने लगी, “पापा जी, बनाना खानी …हहहहै”. मैंने उसे गोद में उठाया और अपने घर के पास ही आचार्य निकेतन मार्केट की तरफ निकल पडा.
वह एक अच्छी मार्केट है जहाँ छोटी सी सडक के दोनों ओर रिक्शे वालों ने कब्जा जमा रखा है. उन रिक्शे वालों के पीछे फलों की रेहडीयाँ हैं. उन रेहडीयों के पीछे पक्की दुकानें हैं जिनकी आये दिन रिक्शे वालों और रेहडी वालों से तूतू-मैंमैं होती रहती है.
मै सडक पार करके रिक्शेवालों के बीच से रास्ता तलाश ही रहा था कि तभी एक दुपहिया वाहन ने, जिस पार हट्टे-कट्टे तीन लोग सवार थे, मुझे पीछे से टक्कर दे मारी. टक्कर लगते ही मैंने आगे जाते हुए एक रिक्शे को पकड कर बडी मुश्किल से अपने आप को गिरने से बचाया. मैंने गुस्से से पीछे मुड कर देखा तो दुपहिया चालक चिल्लाया, “क्यों बे दिखता नहीं है क्या?” मैं बोला भाई साहब दिख तो रहा हैं लेकिन आगे दिख रहा है पीछे से तो आप आ रहे हो आप को देखना चाहिये था. वह फिर गुर्राया,”अबे देखा था तभी तो रोक दिया, वरना सडक पर पडा होता.” मैं बोला भाई साहब इतना गरम क्यों होते हो आप खुद तीन-तीन लोगों को लेकर स्कुटर चला रहे हो, आपको देखना चाहिये मेरी गोद में बच्चा है. अबे तो बच्चे को कुछ हुआ तो नहीं और हाँ तू कार दिलवादे फिर तीन-तीन को लेकर नहीं चलुंगा. मन किया की बेटी को छोड कर एक झापड रसीद कर दूँ. लेकिन मैंने सोचा की छोडो यार क्या बात बढाना. लेकिन तब तक भीड ने उस दुपहिया चालक को घेर लिया और लगे उसे गाली निकालने. उस दुपहीया चालक की हालत बिगडने लगी थी. मैंने लोगों से कहा, कोई बात नहीं इसे जाने दें. लेकिन भीड में से कुछ समाज-सेवक अपने हाथों की ताकत आजमाना चाह रहे थे. बडी मुश्किल से मैंने उस दुपहिया चालक को वहाँ से निकलवाया. लेकिन वो भी कम न था जाते-जाते खिसीयाते हुए मुझे कहता, “साले, निकल ले यहाँ से बहुत पिटेगा”. उसकी इस बात पर मुझे हँसी आ गयी. मैंने सोचा, गलती भी करो, उसका एहसास भी ना करो, झगडा भी करो.. पता नहीं घर से क्या सोच कर निकलते हैं हम लोग.
तभी मेरी बेटी बोली,” पापा जी अंकल भाग गये, अंकल गंदे-अंकल गंदे”. मैं मुस्कुराया, बोला नही बेटा कोई गंदा नहीं होता और केले वाले की रेहडी की तरफ बढ चला.
सही है.
प्रगतिशील सोच
Brother, this kind of attitude needs proper treatment. Inko ekadh chimat lagwani hi chahiye thi. Next time, please spur on the crowd!
आप वाकई शरीफ, सज्जन किस्म के इंसान हैं।
वैसे, जब छोटी बच्ची साथ में थी तो किसी प्रकार के हंगामे से बचना ही समयोचित था, जो आपने किया।
baby saath thi to aapne jo kiya vah ek dam sahi tha,kabhi kabhi kuch is tarah ke log bhi milte hai,sayam se kaam lena samjhdari thi.
खालिस भारतीय चरित्र हैं दुपहिया वाले सज्जन! 🙂
भाई बात आप की ठीक हे अब इन के साथ बात करना भी अपनी इज्जत खराब करना हे, आप ने उचित किया.
भाई आपने situation के हिसाब से सही किया. लेकिन ऐसे लोगों को अपने कीये की insight देने के लिए इनकी अच्छी पिटाई होनी चाहिए. नही तो कल फिर ये किसी और सज्जन के साथ बदसलूकी करेंगे.
अगर ऐसे लोग “खालिस भारतीय चरित्र” वाले हैं तो मुझे अपने देश के चरित्र से नफरत है.
ऐसे लोग हमारे आपके बीच के वो लोग हैं, जिन्हें जीवन में कड़वाहट ही मिली है, हर तरह से हताश और निराश. इन्सान दूसरो को वही दे पता है जो उसके पास होता है. इनसे उम्मीद न रखें, न इनकी बातों को दिल पर लें. आपने ठीक ही किया बात न बढाकर, वह तो कड़वा ही रहता, लेकिन बच्चे के मन में ग़लत उदाहरण जाता.